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दीपावली विशेष

दीपावली कार्तिक मास के अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। हम पंच महापर्व के रूप में मनाते हैं जो कि कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि से शुरू होकर शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को समाप्त होती है।इनका अलग-अलग महत्व है।

प्रथम पर्व– (धन त्रयोदशी) -इसे लोग धनतेरस के नाम से जानते हैं। इसका महत्व धन, स्वास्थ्य और समृद्धि से जुड़ा हुआ है। इसी दिन भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के बाद प्रकट हुए थे। भगवान धनवंतरी आयुर्वेद के जनक जाने जाते हैं इसे स्वास्थ्य और दीर्घयु के प्रतीक के रूप में भी मनया जाता है।

इसका दूसरा महत्व यम के पश से मुक्ति के लिए घर के बाहर यम दीपक  जलया जाता है। किसी पौराणिक कथा के अनुसार एक पतिव्रता स्त्री को यमराज ने दया करके अभय दान दिया और वरदान दिया कि जो कोई भी इस दिन संध्या को यम के नाम की दीपक जलाता है तो उसको अकाल मृत्यु नहीं होती है।

इसके अलावा लोग माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा करते हैं। इसके प्रतीक के रूप में लोग नई वास्तु जैसे स्वर्ण आभूषण, वर्तन, कार और अपनी पसंद की कोई चीज खरीद कर खुशी मनाते हैं इससे सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है और घर में सुख शांति में वृद्धि होती है।

पूजा मुहूर्त -18 अक्टूबर को शाम 7:44 बजे से रात 08:40 बजे तक रहेगा।

खरीददारी का समय दोपहर 12:18 से 19 अक्टूबर को दोपहर 1 बजे तक होगा।

यम दीपक का समय शाम 6:45 से 07:50 तक रहेगा।

द्वितीय पर्व (रूप चतुर्दशी) – इसे नरक चतुर्दशी और काली चौदश के नाम से भी जाना जाता है। ये त्यौहार दीपावली के ठीक एक दिन पहले कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नमक अत्याचारी राक्षस का वध करके 16108 कन्याओं को जेल से मुक्त करके सम्मानित किया। नरक अंधकार को बोलते हैं का अंत करके प्रकाश के रूप में छोटी दीपावली मनई जाती है।

रूप चौदश की एक रोचक कथा है जिसमें तपस्या में लीन हिरण्यगर्भ नाम के राजा को शरीर में कीटो के काटने  से अत्यंत कुरुप हो गया। नारदजी द्वारा बताया गया उबटन और वनौषधि का शरीर में लेप करने से पहले की भांति सुंदर हो गया। टैब से इसे रूप चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर उबटन लगाने और पानी में तिल और चिरचिरी (एक प्रकार की वनौषधि है) डालकर नहाने से सौंदर्य में वृद्धि होती है।

मुहूर्त 20 अक्टूबर प्रातः 4:30 बजे से प्रातः 5:30 बजे तक।

त्रितीय पर्व (दीपावली) –यह पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। इस त्यौहार को अंधकार पर प्रकाश के विजय पर्व के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवन राम १४ वर्षो के वनवास समाप्त कर अयोध्या लोटे थे इसी के ख़ुशी स्वरुप अयोध्या वासिओ ने दीप  जलाकर उनक स्वागत कर ख़ुशी मनाई थी।  उस दिन से दीपावली के रूप में हर साल लोग दिप जलाकर ख़ुशी मानते हैं।  इस दिन लक्ष्मी   माता के साथ भगवान गणेश जी की पूजा कर लोग अपने सौभाग्य जागते हैं  क्योकि धन के साथ विवेक होने से धन का सदोप्योग होता है।

पूजा मुहूर्त: लक्ष्मी पूजा २१ अक्टूबर की शाम बजे से :३० तक।

चौथा पर्व: (गोवर्धन पूजा ) यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाई जाती है। दीपावली के अगले दिन ही गोवर्धन पूजा का त्यौहार आता है। कथा के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने देवराज इन्द्र के कोप से बचने के लिए अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पहाड़ को उठाकर ब्रजवासिओ की रक्षा की थी। श्री कृष्ण ने देवराज इन्द्र के जगह गोवर्धन पर्वत और यमुनाजी जी की पूजन के लिए ब्रजवासिओ को सलाह दिए था जिससे इन्द्र क्रोधित होकर इतनी वर्षा करने लगे की उनका जान बचाना मुश्किल हो गया थी उसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासिओ की रक्षा की उसके बाद इन्द्र को जानकारी मिलने पर उसने क्षमा मांगी।      

पूजन मुहूर्त सुबह ०६:१५ से ०८:३० तक।

पांचवा पर्व ( भैया दूज ) : इसे भातृ द्वितीय के नाम से भी जाना जाता है। एक कथा के अनुसार एक बार भगवान यमराज धरती लोक पर घूमते हुए अपनी बहन यमुना जी के पास आये थे, यमुनाजीने अपने भाई यमराज का उचित आदर सत्कार किआ। यमराज ने यमुनाजी को वर मांगने को कहा,यमुनाजी ने वर स्वरुप कहा की आज के दिन जो भाई अपने बहन के यहाँ आकर आतिथ्य ग्रहण करता उसे यमराज याम पाश से मुक्त करते हैं अर्थात अकाल मृत्यु नहीं होती है।

तिलक मुहूर्त दोपहर १:३० मिंट से ३: ३० मिंट तक रहेगा

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