देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य। प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥
(शरणागत की पीड़ा दूर करने वाली हे देवि! हम पर प्रसन्न हो जाओ। सम्पूर्ण जगत की माता ! प्रसन्न हो जाओ । विश्वेश्वरि ! विश्व की रक्षा करो । देवी ! तुम्हीं चराचर (जीव-जगत) जगत की अधीश्वरी हो ।
नवरात्री शक्ति संवर्धन का एक प्रमुख त्यौहार है। वर्ष भर में चार नवरात्रि होती है। इनमे चैत्र और शारदीय विशेष रूप से प्रमुख है और दो नवरात्रि जो विशेष साधना के लिए प्रसिद्ध है गुप्त नवरात्री की नाम से जानी जाती है। गुप्त नवरात्री माघ और आषाढ़ महीने में होती है। नवरात्री में विशेष रूप से देवी दुर्गा के नव रूपों की पूजा की जाती है। देवी की नव रूप इस प्रकार से हैं। पहला रूप शैलपुत्री, दूसरी ब्रह्मचारिणी तीसरी चंद्रघंटा चौथी रूप कुष्मांडा है, देवी का पांचवा रूप स्कंदमाता की नाम से जाना जाता है, छठवा रूप कात्यायनी का है, सातमा कालरात्रि की नाम से जाना जाता है, देवी का आठवाँ रूप महागौरी है, नौमा रूप सिद्धिदात्री का है। इस प्रकार अलग अलग दिनों में देवी की नौओ रूपों की पूजा अलग अलग तरीके से की जाती है।

इस वर्ष शरद नवरात्री 22 सितम्बर 2025 सोमवार को प्रतिपदा तिथि में शुरू होकर नवमी तिथि 1 अक्टूबर को तथा 2 अक्टूबर को विजयदशमी का त्यौहार मनांए जायगा।
२२ सितम्बर को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और चन्द्रमा कन्या राशि पर होगा। कलशस्थापन का उत्तम मुहूर्त सुबह 6 बजकर 9 मिंट से 8 बजाकर 6 मिट तक रहेगा। इसके अलावा अभिजीत मुहूर्त 11:50 से 12:35 तक होगा। आप अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापन कर सकते है।
हर वर्ष माता दुर्गा अलग, अलग वाहनों से आती और जाती हैं जिसका विशेष मह्त्व होता है। इस बार माता हाथी पर ही आ रही है और हाथी पर ही जा रही हैं। माता के हाथी पर आना बहुत ही शुभ संकेत है यह सुख, समृद्धि और ज्ञान का प्रतिक है।